Monday, April 28, 2008

रीटा पणिक्कर के नाम दूसरा पत्र

दिनांक - 03-12-2007
आदरणीया निदेशक,
बटरफ्लाइज , यू-४, ग्रीनपार्क एक्सटेंशन , नई दिल्ली- ११००१६ ।
महोदया,
विगत 23-10-2007 को फतेहपुरी में वरिष्ठ सहकर्मी पी॰ एन॰ राय द्वारा अधिकांश सहकर्मियों, सैकड़ों बच्चों और स्थानीय नागरिकों-व्यवसायियों के सामने मेरे साथ किये गये अमानवीय दुर्व्यवहार और मानसिक भावनात्मक उत्पीड़न के बारे में मैंने आपके और संगठन के अन्य महत्वपूर्ण सहकर्मियों के नाम एक लिखित पत्र दिया था। आमतौर पर एनजीओ के बारे में लागों की यह धारणा और विश्वास है कि वहाँ लोकतांत्रिक मूल्यों, मानवाधिकार और असहमति का सबसे अधिक मखौल उड़ाया जाता है। यह भी कि ज्यादातर एनजीओ से लोकतांत्रिक व्यवहार और पारदर्शिता की उम्मीद करना इस वक्त की सबसे बड़ी बेवकूफियों में से एक हो सकती है। इस सबके बावजूद अगर मैंने आपके समक्ष इस अमानवीय प्रताड़ना की शिकायत की थी तो केवल इसलिये कि मैं आज भी संगठन और उसके लोकतांत्रिक मूल्यों में भरोसा करती हूँ और मेरा दृढ़ विश्वास था कि एक ऐसे संगठन में जिसका नेतृत्व एक स्त्री कर रही है, वहाँ एक इतने गंभीर किस्म के स्त्री-उत्पीड़न और हिंसक व्यवहार को कतई माफ नहीं किया जाएगा और दोषी को ऐसी सजा मिलेगी जो एक उदाहरण प्रस्तुत कर सके। अब तक के घटनाक्रम और मेरे अनुभव ने यही साबित किया है कि मैंने बहुत ज्यादा उम्मीद की थी। मैं भूल गई थी कि मेरी हैसियत इस संगठन में क्या है। घटना की लिखित शिकायत के बाद आपने न तो दोषी को संगठन के समक्ष बुलाकर बात करने की जरूरत समझी और न ही मुझसे किसी प्रकार की संवेदना ही प्रकट की। उल्टे आपने अकेले में मुझे बुलाकर कहा कि मैंने लिखित रूप से शिकायत करके और संगठन के अन्य साथियों के समक्ष यह बात रखकर बड़ी गलती की है, जिसके लिए मुझे आपसे लिखित तौर पर माफी मांगनी होगी। इसके जवाब में मैंने यह कहा था कि ऐसा करना मेरा लोकतांत्रिक अधिकार है और मैं नहीं समझती कि संगठन के मंच पर अन्याय का विरोध करना गलत है, इसलिये मैं कोई माफीनामा नहीं दे सकती।
न्याय के लिये धैर्यपूर्वक इंतजार करते हुए मैं संगठन में अपनी जिम्मेदारियों का अपनी तरफ से बेहतर निर्वहन करती आ रही हूँ; और गौर करने वाली बात यह है कि इतनी बड़ी घटना और समूचे संगठन द्वारा इस आपराधिक कृत्य की भर्त्सना करने के बाद भी पी॰ एन॰ राय के व्यवहार और हाव-भाव में कोई परिवर्तन नहीं आया बल्कि वह और भी हिम्मत के साथ मुझे अप्रत्यक्ष रूप से चुनौती भेजते रहे, धमकाते रहे कि मैंने उनका विरोध करके बहुत बड़ी गलती की है जिसका खामियाजा मुझे जल्दी ही भुगतना पड़ेगा। चूँकि संगठन के सभी सहकर्मियों को यह उम्मीद थी कि आपकी तरफ से इस घटना का संज्ञान लेते हुए तुरंत बैठक बुलाई जायेगी जिसमें पी॰ एन॰ राय से इस आपराधिक कृत्य का स्पष्टीकरण लिया जाएगा और उचित दण्डात्मक कार्रवाई की जायेगी, परन्तु काफी समय बीत जाने के बाद भी जब कोई हलचल नहीं सुनाई पड़ी तो संगठन के पच्चीस-तीस साथियों ने स्वहस्ताक्षरित शिकायत -पत्र में 23 अक्टूबर की घटना और पी॰ एन॰ राय के इस भयावह कृत्य की घोर भर्त्सना करते हुए आपसे यह मांग की थी कि -
(क) इस निकृष्टतम कुकृत्य की, जो एक स्त्री के प्रति मानसिक और भावनात्मक हिंसा है - कठोर शब्दों में निन्दा करनी चाहिये।
(ख) पी॰ एन॰ राय को उषा से लिखित तथा सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिये।
(ग) उषा जो कि स्वयं पीडि़ता हैं, उनसे किसी भी तरह का माफीनामा या लिखित आश्वासन न माँगा जाए।
(घ) पी॰ एन॰ राय का व्यवहार शुरू से ही न तो बाल-हितैषी है और न ही ऐसा है जो हमारे बच्चों और स्टाफ के लिये अनुकरणीय है। यह संस्था के ध्येय और मूल उद्देश्यों के खिलाफ है। इस प्रकार के महिला विरोधी और मानवीय गरिमा तथा अधिकारों के खिलाफ काम करने वाले व्यक्ति पर उदाहरण प्रस्तुत करने वाली कार्रवाई की जाए।
- उपरोक्त पत्र जिसमें संगठन के पच्चीस से अधिक सदस्यों के हस्ताक्षर थे, आपको सौंपा गया, जिसके फौरन बाद आपने दो काम जल्दी-जल्दी कर डाले। एक तो यह कि 26-11-2007 को मुझे कार्यालय बुलवाकर पी॰ एन॰ राय द्वारा 25-10-2007 की तिथि में मेरे नाम लिखा गया पत्र ऐन उस वक्त दिया जब संगठन की बैठक शुरू हो रही थी और मेरे पास उस पत्र को पढ़ने का बिल्कुल भी वक्त नहीं था। दूसरा यह कि आनन-फानन में उसी दिन बैठक कर ली और पूरी बैठक में अंग्रेजी के अलावा हिन्दी में एक शब्द भी आपने नहीं कहा, नतीजतन बैठक की ज्यादातर बातें मेरी समझ से बाहर ही रहीं और मैं बातचीत की पूरी प्रक्रिया में कोई शिरकत नहीं कर पाई। मैं इससे पहले की कितनी ही बैठकों में शामिल हुई पर इस बैठक में क्यों सारी कार्यवाही एक विदेशी भाषा में चल रही थी यह मुझे बाद में ही समझ में आ सका। सचमुच हिन्दी तो इस देश के नब्बे प्रतिशत असभ्य, गँवार और कंगलों की भाषा है, भला उसमें ऐसी क्षमता कहाँ कि कोई गम्भीर बातचीत की जा सके। इस देश के मूर्ख, निरक्षर, भोले-भाले लोगों, स्त्रियों और दलितों का उद्धार अंग्रेजी बोलने-समझने वाले लोग ही करते आए हैं और रहेंगे भी - यह बात तो औपनिवेशिक स्वर्णयुग से ही हम सब जानते हैं। यह एक सिद्ध और आजमाई हुई भाषा है जिसने सैकड़ों वर्षों तक दुनिया के भूखे-नंगे, बीमार-लाचार लोगों और उनकी संभावनाओं पर हुकूमत की है। बहुत ताकत है इसमें, यह विजेता लोगों की भाषा है। सो देश के एक अत्यंत पिछड़े इलाके से आई हुई एक स्त्री जिसे अंग्रेजी नहीं आती वह भला क्या विरोध कर सकेगी एक अंगरेजी समाज के सामने।
बाद में मुझे और साथियों ने बताया कि बैठक में आपने पी॰ एन॰ राय के कृत्य पर दुख प्रकट करते हुए कहा कि आपने उनपर कड़ी कार्रवाई की है, पर साथियों के यह पूछने पर कि क्या कार्रवाई की गई है, आपने कहा कि यह बताना आप जरूरी नहीं समझतीं। संगठन के खास व्यक्तियों के बारे में सारी बातें सार्वजनिक नहीं की जा सकतीं। साथ ही आपने यह कहा है कि पी॰ एन॰ राय द्वारा किया गया दुर्व्यवहार एक स्त्री के उत्पीड़न के दायरे में नहीं आता। एक सार्वजनिक स्थल पर किसी स्त्री के साथ घोर अपमानजनक व्यवहार करना, उसे मानसिक और भावनात्मक रूप से चोट पहुँचाना, संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा पारित प्रस्ताव और इस देश के संविधान द्वारा लैंगिक उत्पीड़न का ही एक रूप माना गया है। अगर आप नहीं मानतीं तो अवश्य ही इसके पक्ष में आपके पास अकाट्य तर्क होंगे। फिर अगर आप पी॰ एन॰ राय को दोषी मानने से इनकार करती हैं तो यह कहने का क्या अर्थ है कि आपने उन्हें कड़ा दण्ड दिया है ?
सबसे अधिक आश्चर्य मुझे तब हुआ जब मैंने बैठक से लौटकर पी॰ एन॰ राय द्वारा मेरे नाम लिखा गया वह पत्र पढ़ा, जिसे आपने उनके माफीनामे के तौर पर मुझे सौंपा है। जाहिर है यह पत्र आपकी सहमति से, आपके निर्देशानुसार लिखा गया है। यह पत्र एक लोकतांत्रिक संगठन में न्याय की उम्मीद कर रहे किसी भी व्यक्ति के साथ एक भद्दा मजाक ही कहा जा सकता है। आप इस बात से कैसे इनकार करेंगी कि आपने यह पत्र नहीं पढ़ा है।एक भयावह घटना, जिसने मेरे अधिकांश सहकर्मियों, सैकड़ों बच्चों और मुझे दहला दिया था, को अंजाम देने वाला व्यक्ति, उससे भी बड़ी निर्लज्जता के साथ यह कह रहा है कि उसने मेरे साथ जो व्यवहार (?) किया वह व्यवस्था के लिये आवश्यक था। क्या आपने उस व्यक्ति से पूछने की जरूरत महसूस की कि एक महिला सहकर्मी को सरेआम धक्के मारकर शेल्टर से बाहर निकालने की तत्परता और उसके साथ बर्बर कबीलों के जमाने की भाषा का इस्तेमाल कर वह व्यवस्था-पुरूष आखिर किस किस्म की व्यवस्था वहाँ बहाल कर रहे थे ? जिस महिला सहकर्मी के शेल्टर में प्रवेश करने पर उन्हें व्यवस्था भंग होने की भारी चिंता थी, आखिर उसके पीछे क्या वजह थी ? पत्र में उन्होंने खुद को एक समाजसेवक कहते हुए लिखा है कि वे व्यक्तिगत जीवन में महिलाओं को आदर और सम्मान की नजर से देखते हैं - फिर उस दिन की घटना क्या थी ? क्या यह बात उनके सार्वजनिक जीवन और सार्वजनिक स्थलों पर लागू नहीं होती ? पत्र में जो तिथि लिखी गई है वह है - 25-10-2007, और यह पत्र मुझे दिया गया 26-11-2007 को। जाहिर है इतने दिनों तक आपने मेरे माफीनामे या लिखित आश्वासन का इंतजार किया।
26-11-2007 की बैठक के बाद संगठन के पुराने सहकर्मियों ने मुझे साफ तौर पर कहा कि अब मैं संगठन में अपने लिये उल्टी गिनती शुरू कर दूँ - क्योंकि बैठक में जैसी बातचीत हुई है, उससे यही संकेत निकलते हैं। वैसे भी पी॰ एन॰ राय के कारगुजारियों की शिकायत करके मैंने बड़ी आफत मोल ले ली है, और संभव है मुझे इसकी भारी व्यक्तिगत कीमत चुकानी पड़े। लेकिन आपके नेतृत्व और संगठन में मेरा विश्वास पहले की तरह दृढ़ है और मैं मानती हूँ कि संगठन से न्याय की उम्मीद करते हुए मुझे और इंतजार करना चाहिये।
आदर सहित,
उषा
अध्यापिका,बटरफ्लाइज ।

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