तिथि - 05-12-2007
सेवा में,
निदेशक ,
बटरफ्लाइज, यू-4,ग्रीनपार्क एक्सटेंशन , नई दिल्ली -110016।
महोदया,
03-12-2007 के मेरे पत्र के जवाब में आपने कल जो सामूहिक सर्कुलर जारी किया है उसमें एक बार फिर से पूरे घटनाक्रम को यथार्थ और वस्तुपरक तरीके से न देखकर उससे जैसे-तैसे पीछा छुड़ाने की कोशिश की है जो आपकी प्रतिष्ठा के अनुरूप नहीं कहा जा सकता। संगठन के प्रमुख की हैसियत से जिस फैसले पर आपको पहले दिन ही पहुँच जाना था, वहाँ तक पहुँचने से बचाने वाले रास्तों की तलाश ने आपको उस मनःस्थिति तक ला खड़ा किया है कि अब आपको अपने ही संगठन और उसकी एकजुटता पर भरोसा नहीं रहा। आपको यह स्वीकार करना चाहिये कि आप अपने ही संगठन के खिलाफ खड़ी हो गई हैं। सर्कुलर से मुख्यतः जो बातें उभरकर आ रही हैं वे इशारा करती हैं कि -
(क) आप इस बात से अत्यंत दुखी हैं कि संगठन में सब आपके हिसाब से क्यों नहीं सोचते। संभवतः आप यह मानती हों कि वेतनभोगी कर्मचारी होने के कारण इस संगठन में किसी को अलग विचार रखने अथवा असहमति व्यक्त करने का क्या अधिकार हो सकता है।
(ख) विगत दिनों के घटनाक्रम को देखते हुए आपको इस बात पर संदेह है कि यह संगठन एकजुट रह गया है, इसलिये आप जब एकजुटता की बात कर रही हैं तो उसमें आत्मविश्वास की कमी झलक रही है। पिछले 23 अक्टूबर की घटना के बाद से पूरा संगठन अन्याय के खिलाफ संगठित और एकजुट हुआ जो कि आप जानती हैं। क्यों यह एकजुटता आपको निराश या हतोत्साहित करती है ? क्या इसलिये कि इसे राजधर्म के साथ खड़ा होना चाहिये था न कि न्याय के पक्ष में ?
(ग) आप कहती हैं कि हमारे पास वह मंच उपलब्ध था जहाँ हम शिकायतों को सुलझा सकते थे। फिर क्यों उसका उपयोग नहीं हुआ ? क्या इसलिये नहीं कि आपको मालूम था कि उस मंच से खासकर इस मसले पर मनमाफिक निर्णय लेना संभव नहीं होगा ?
(घ) आपको जिस एक और बात पर बहुत ज्यादा ऐतराज है वह यह कि आपको मेरे द्वारा भेजे गये पत्र संगठन के और लोगों की जानकारी में क्यों हैं। सार्वजनिक फण्ड से सामुदायिक सहभागिता के आधार पर काम करते हुए अपने सहकर्मी बाल अधिकार कार्यकर्ताओं के प्रति ऐसा गैरबराबरी वाला नजरिया रखना क्या आपको उचित लगता है ? क्या आप यह नहीं मानतीं कि इस कार्यक्रम में भागीदारी निभा रहे सभी व्यक्ति एक समान और महत्वपूर्ण हैं तथा उनके बीच पूरी पारदर्शिता होनी चाहिये ? फिर इस दुराव-छिपाव का क्या अर्थ है ?
(च) आपने यह बताया है कि इस पूरे मसले की जाँच हेतु आप किसी बाहरी व्यक्ति को नियुक्त करने जा रही हैं। यह अत्यंत दुखद स्थिति है। जब 23 अक्टूबर को मेरे साथ हुए अमानवीय दुर्व्यवहार का संगठित होकर विरोध करते हुए संगठन के पच्चीस से अधिक सहकर्मियों ने स्वहस्ताक्षरित मांग-पत्र में आपसे यह माँग की कि पी॰ एन॰ राय को इस आपराधिक कृत्य के लिये कड़ी सजा दी जाए, ताकि फिर कोई इस संगठन में महिलाओं या बच्चों के साथ हिंसक व्यवहार करने और उनकी मानवीय गरिमा को नष्ट करने की हिम्मत न कर सके, तो यह अपने आप में पूरे संगठन का निर्णय था, जिसपर आपको केवल अपनी सहमति की मुहर लगाने की औपचारिकता पूरी करनी थी। उसके बाद भी संगठन के इस बहुमत के निर्णय को दरकिनार कर किसी बाहरी जाँच की बात करना न सिर्फ हास्यास्पद है बल्कि एक लोकतांत्रिक संगठन में बहुमत की अवहेलना भी है। दूसरी बात यह कि जब संगठन के 95 प्रतिशत सदस्यों के निर्णय पर आपको विश्वास नहीं है, तो आपके द्वारा मनोनीत किसी बाहरी व्यक्ति की जाँच या उसके निष्कर्षों की विश्वसनीयता क्यों होनी चाहिये ?
मेरा विश्वास पहले भी संगठन में था और अब भी उतना ही है। इस पूरे मामले को संगठन से बाहर के किसी भी व्यक्ति को सौंपने से मेरा पूरा विरोध है और मैं इसे कतई स्वीकार नहीं कर सकती। उम्मीद तो यही थी कि आप मानवाधिकार हनन और स्त्री-उत्पीड़न के इस मसले पर संगठन के निर्णय के पक्ष में खड़ी होंगी और पी॰ एन॰ राय जैसे मानव-विरोधी व्यक्ति के लिये इस संगठन में कोई जगह नहीं रहने देंगी, परन्तु अब तक आपने जो भी कदम उठाये हैं उससे यही जाहिर होता है कि आप एक दोषी व्यक्ति को हर कीमत पर बचाना चाहती हैं। एक बाहरी व्यक्ति या संगठन से जाँच कराने की आपकी घोषणा भी आपके इसी प्रयास का एक हिस्सा है। दुनिया के इतिहास में जाँच कमिटियों ने ज्यादातर सच को झुठलाने या उसे निलम्बित करने में ही अपनी महारत साबित की है। न्याय के लिये अपने इस संघर्ष में मैं ऐसे किसी भी प्रयास को कबूल नहीं कर सकती और मुझे विश्वास है मेरे सभी सहकर्मी अन्याय के खिलाफ तनकर खड़े रहेंगे और संगठन के इस आंतरिक मामले को किसी बाहरी व्यक्ति अथवा संगठन को सौंपे जाने के कदम का विरोध करेंगे।
आदर सहित,
उषा ,
बटरफ्लाइज।
Monday, April 28, 2008
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