Thursday, April 24, 2008

रीटा पणिक्कर के नाम पहला पत्र

2४ -१० -२००७, नयी दिल्ली।
सेवा में,
निदेशक,
बटरफ्लाइज , ग्रीन पार्क एक्सटेंशन ,नई दिल्ली-110016।
विषय:- फतेहपुरी नाइट शेल्टर में एक वरिष्ठ सहकर्मी पी० एन० राय और उनके उकसावे पर केयर टेकर कलाम द्वारा मेरे साथ लगातार किये जा रहे दुर्व्यवहार और मानवाधिकार हिंसा के बारे में।
आदरणीया रीटा जी,
नमस्कार।
मैं यह पत्र आपको इसलिये लिख रही हूँ क्योंकि अब इसके अलावा मेरे पास और कोई विकल्प नहीं रह गया है। एक महिला होने की वजह से जैसा भेदभाव और हिंसक व्यवहार मेरे साथ हो रहा है मुझे इसपर काफी दुख भी है और आश्चर्य भी। आश्चर्य इसलिये कि मैं अबतक यही समझती रही कि जिस संगठन में मैं काम कर रही हूँ वह किसी भी किस्म के मानव अधिकारों के दमन के खिलाफ तो है ही साथ ही इस संगठन के कुछ मूल्य भी हैं, जिनसे पूर्ण सहमति का वादा लेने के बाद ही इस संगठन से कोई जुड़ सकता है, और जिस एक बात से संगठन के अंदर मानवीय और न्यायपूर्ण माहौल की उम्मीद बनती है वह है एक महिला का संगठन में शीर्ष पर होना। पर मुझे दुख के साथ यह स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं है कि अबतक के अनुभव ने संगठन और इसके ढाँचे पर मेरे विश्वास को कम ही किया है। क्या ऐसे संगठन को लोकतांत्रिक कहा जा सकता है जहाँ निष्ठापूर्वक काम करनेवालों के साथ जानवरों-जैसा सलूक किया जाए और विरोध की आवाज को धमकियों और हिंसक व्यवहार से दबाया जाए ? सवाल उठता है कि जब बाल अधिकारों के लिये काम कर रहे कार्यकर्ता स्वयं ही उत्पीड़न के शिकार हों तो उस संगठन में बच्चों के अधिकारों की कितनी सुरक्षा हो सकेगी - उनमें भी वैसे बेघर और बेसहारा बच्चे, जिनके साथ हर कदम पर छल ही होता आया है ?
गौरतलब है कि -
(1) विगत 22-10-2007 को अपनी कार्ययोजना (वर्क प्लान) के अनुसार जब मैं फतेहपुरी नाइट शेल्टर में कक्षा लेने पहुँची तो कक्षा के वक्त बच्चों से व्यवस्था-सम्बंधी कार्य कराये जा रहे थे। मेरे द्वारा हस्तक्षेप करने पर केयर टेकर कलाम ने बच्चों के सामने ही मुझसे अपमानजनक व्यवहार किया और कहा कि यहाँ मेरा राज चलता है। आपको जिससे शिकायत करनी हो करके देख लीजिये, मेरा कुछ बिगड़ने वाला नहीं है। बड़ी मुश्किल से बच्चों की कक्षा ली जा सकी, क्योंकि माहौल काफी अशांत हो चुका था।
(2) अगले दिन 23-10-2007 को जब मैं तय समय पर दुबारा फतेहपुरी पहुँची तो शेल्टर के गेट पर ही वरिष्ठ सहकर्मी पी० एन० राय ने अत्यंत भद्दे और अपमानजनक तरीके से मुझे रोक दिया और कहा कि मुझे अंदर नहीं जाने देंगे। उस समय वहाँ काफी संख्या में अन्य सहकर्मी और बच्चे उपस्थित थे और यह दृश्य देख रहे थे। जब मैंने उनसे इस दुर्व्यवहार का कारण जानना चाहा तो उन्होंने कहा कि इस संगठन में केवल उनकी मर्जी चलती है और अगर इस संगठन में रहना है तो उनके इशारे पर चलना होगा। उन्होंने दुबारा मुझसे कहा कि फौरन यहाँ से निकलो वरना धक्के मारकर निकाल दूँगा। चूँकि पूरी घटना मुख्य गेट पर घटित हो रही थी इसलिये बाहर भी काफी लोग जमा हो गये थे जो अजीब तरीके-से मुझे घूर रहे थे। मैं खुद को अत्यंत अपमानित महसूस करती हुई करीब आधे घंटे तक गेट के बाहर खड़ी रही और उसके बाद मैंने ऑफिस में इस घटना की सूचना दी।
यह सारी बात आपके सामने रखते हुए मैं आपसे यह जानना चाहती हूँ कि क्या -
(1) ऐसे माहौल में संगठन में किसी महिला का सम्मानजनक तरीके से काम करना संभव है ?
(2) क्या एक लोकतांत्रिक और मानवाधिकारों के लिये काम करने वाले संगठन में किसी व्यक्ति को, चाहे वह किसी भी पद पर हो, किसी महिला सहकर्मी का उत्पीड़न करने की छूट दी जा सकती है ? अगर नहीं तो ऐसे व्यक्ति को संगठन में रखने की क्या मजबूरी हो सकती है ?
(3) शेल्टर के बच्चों, दूसरे सहकर्मियों और बाहरी व्यक्तियों के सामने महिला सहकर्मी के साथ इस तरह का बर्ताव करना संगठन के किन मूल्यों का परिचय देता है ?
(4) इन दिनों चूँकि मैंने कई बार अपने साथ किये जा रहे दुर्व्यवहार की शिकायत मौखिक तौर पर की है और हर बार मुझे यह सुनना पड़ा है कि यहाँ विरोध करने वाले को अंततः संगठन छोड़ने पर मजबूर कर दिया जाता है। क्या मैं यह समझूँ कि मेरे साथ भी यह सब इसी वजह से किया जा रहा है कि मैं भी अपना आत्मसम्मान बचाने के लिये यह संगठन छोड़ दूँ, जिस तरह दूसरे सहकर्मी छोड़ते रहे हैं ?

चूँकि सड़क के बच्चों के लिये काम करना मेरी व्यक्तिगत प्रतिबद्धता है और मुझे उन जिम्मेदारियों का भी एहसास है जो इस संगठन से जुड़ते वक्त मैंने ली थी, इसलिये मैं ये सारे सवाल आपके और संगठन के सामने रख रही हूँ। इस उम्मीद के साथ कि एक सामाजिक और लोकतांत्रिक संगठन अपने मूल्यों को किसी एक व्यक्ति की व्यक्तिवादी प्रवृत्तियों पर कुर्बान नहीं होने देगा और समुचित कार्रवाई करेगा, ताकि बेघर और मुसीबतजदा बच्चों तथा बाल अधिकार कार्यकर्ताओं के सम्मान और अधिकारों की सुरक्षा की जा सके एवं उन्हें एक गरिमा से पूर्ण माहौल दिया जा सके।
विश्वासभाजन,
उषा
अध्यापिका, बटरफ्लाइज।

No comments:

बच्‍चे उन्‍हें बसंत बुनने में मदद देते हैं !