Saturday, April 19, 2008

जितेन्द्र की मौत से उठते सवाल

street health initiative
dear friends,
we weep this morning to mourn an unknown boy jitender who died a lonely completely avoidable death of tb. his last breadths were on a hospitall bed in lnjp hospital with a young caring doctor and some volunteers by his side. but till just a day earlier, he was wasting between railway tracks on new delhi railway station.
in dil se, we need to craft (and resource) a community health initative for the streets (and our hostels). we have a small proposed plan. we wanted to invite you all to a brainstorming for this, at B102, Sarvodaya Enclave at 5 pm on 20 july. i do hope that you can make it. thank you for your time and solidarity.
warm regards,
harsh
Harsh Mander,Aman Biradari,
R38-A, South Extension Part 2,New Delhi 110049.

Human history is not only a history of cruelty, but also of compassion, sacrifice, courage, kindness. What we choose to emphasize in this complex history will define our lives. Howard Zinn.

आदरणीय हर्ष सर,
नमस्कार
जितेन्द्र की मौत की ख़बर सुनकर मुझे गहरा सदमा पंहुचा है क्योंकि मैं उसके साथ विगत ५-६ महीनों से व्यक्तिगत रूप से जुड़ा हुआ था, पर मुझे जिस एक और बात से काफी आघात पंहुचा है वह यह कि आपने उसके नाम से जो एक अपील -नुमा पत्र अपने कुछ मित्रों को भेजा है (जो मेरे किसी मित्र ने मुझे फोरवर्ड किया है) उसमे जितेन्द्र के बारे मे आधा ही सत्य लिखा है जबकि आप विगत ४-५ महीनों से जानते थे कि जितेन्द्र को टी.बी. है. चार महीने पहले मैंने वरुण और राजेश भाई के साथ मिलकर एल एन जे पी हॉस्पिटल मे उसका इलाज शुरू करवाया था और उसके बाद जितेन्द्र मार्च के महीने मे सराय बस्ती हॉस्टल मे शिफ्ट हो गया था .
शुरुआत के कुछ दिनों तक हमारे अतिरिक्त प्रयास से उसका इलाज भी चला पर चूंकि आपकी और संगठन की उसमे बिल्कुल भी दिलचस्पी नही थी इसलिए बाद मे उसके लिए एक ही विकल्प बच गया था कि वह सराय बस्ती मे पड़ा पड़ा अपनी मौत के दिन गिनता रहे। तबसे लेकर एक-दो सप्ताह पहले तक , जब उसे अन्तिम बार किंग्सवे कैंप टी.बी. सेंटर मे सराय बस्ती के कुछ बच्चे अकेला छोड़ गए ,जितेन्द्र के साथ कभी सम्मानजनक बर्ताव नही किया गया .
इसलिए आपका यह लिखना अर्धसत्य है कि अस्पताल मे भरती कराने के ठीक एक दिन पहले वह रेलवे स्टेशन पर ट्रैक के बीच मे पड़ा मिला था। मैं या मेरे जैसे मित्र जो अच्छी तरह से उन हालात से परिचित थे जिनसे जितेन्द्र लगातार संघर्ष कर रहा था, वे कभी भी यह कबूल नही करेंगे कि जितेन्द्र की मौत को महज एक द्रवित करने वाली घटना मानकर थोड़े नकली आंसू बहा लिए जाएँ और सचमुच की उस बड़ी गैरजिम्मेदारी से बच निकला जाए जो जितेन्द्र की असमय मौत से साबित हुई है ।
जितेन्द्र की मौत से कई ऐसे सवाल उपज रहे हैं जिनके जवाब देने की ज़िम्मेदारी से हम बच नही सकते –(१) मार्च के महीने में जब जितेन्द्र को सराय बस्ती हॉस्टल में शिफ्ट कराया गया तो क्या उसके इलाज के लिए पर्याप्त इंतजाम किए गए थे ?(२) टी.बी. के एक ऐसे मरीज़ के लिए जिसने पहले ही जीने की आस छोड़ दी थी , उस हॉस्टल में क्या सुविधाएं मुहैया कराई गयी थीं ? हम सभी इस बात को जानते हैं कि हॉस्टल में खाना, पानी, इलाज और सफ़ाई को लेकर कितनी लापरवाही बरती जाती रही है और मरीज़ की बात छोड़ दें वहां तो सामान्य बच्चों के लिए भी हमेशा इन्फेक्शन का खतरा बना रहा है ।(३) जितेन्द्र लगभग तीन महीनों तक सराय बस्ती हॉस्टल में रहा और इस बीच उसके इलाज को लेकर जिस भयानक आपराधिक किस्म की लापरवाही बरती जाती रही , इस बात को तमाम पुराने साथी कबूल करेंगे. उसके नाम पर जो दूध, फल आदि आते थे उसे दूसरे लोग खाते थे और उसकी दवाइयों के पैसों से फिल्मो की सीडी मंगाई जाती थी.(४) क्या यह सच नही है कि अपने इलाज में बरती जा रही लापरवाही से जितेन्द्र अत्यन्त दुखी था और उसने हममे से ज्यादातर लोगो को यह बात बताई थी कि उसका इस संगठन और हॉस्टल प्रशासन से पूरी तरह भरोसा उठ चुका है – कि सभी उसके मरने की प्रतीक्षा कर रहे हैं – कि वह ख़ुद को बहुत ही असुरक्षित और अकेला महसूस कर रहा है ?(५) जब ज़्यादा तबीयत बिगड़ने पर उसे पहले एल एन जे पी और बाद में किंग्सवे कैंप टीबी सेंटर भेज दिया गया तो क्या यह सच नही है कि उसके साथ जो दिलीप नाम का बच्चा होता था केयर टेकर के तौर पर , उसे पानी और इमर्जेंसी की दवाइयाँ खरीदने तक के पैसे नही दिए जाते थे और वो बेचारा दो-दो दिनों तक मरीज़ के साथ भूखा-प्यासा हॉस्पिटल में बैठा रहता था.(६) अगर ऐसे हालत में जितेन्द्र किंग्सवे कैंप से भाग कर फ़िर न्यू डेल्ही रेलवे स्टेशन आ गया था तो उसके पास इसके अलावा और कौन सा विकल्प था ? और क्या जितेन्द्र ही अकेला ऐसा बच्चा था सराय बस्ती हॉस्टल का जिसके साथ ऐसा अमानवीय व्यवहार किया गया ? क्या आरिफ , जो ब्लड कैंसर से पीड़ित था उसके साथ भी यही व्यवहार नही हुआ और बाद में अपनी ज़िम्मेदारी से बचने के लिए उसे चाइल्ड वेलफेयर कमिटी जिसे आप ख़ुद बच्चों के खिलाफ बर्बर कार्रवाई करने वाली एक संस्था के रूप मी बताते रहे हैं, के हवाले कर दिया गया?ये सारे ही सवाल अत्यन्त अप्रिय लगने वाले हैं पर क्या एक ऐसे व्यक्ति को जो बच्चो- खासकर सड़क के बच्चो के लिए बेहतर दुनिया बनाने के नारे के साथ अभियान चला रहा हो , इन सवालों से बच कर निकलने का रास्ता दिया जाना चाहिए ?आप लिखते हैं कि जितेन्द्र जैसे बच्चों की मदद के लिए एक (स्ट्रीट बेस्ड ) कम्युनिटी हैल्थ इनिशिएटिव तुरंत शुरू करने के लिए आपने एक प्लान तैयार किया है ……ताज्जुब है… जितेन्द्र की मौत सड़क पर निराश्रित पड़े हुए किसी बच्चे की मौत की घटना भर नही है बल्कि यह ऐसे बच्चों के नाम पर देश-विदेश से धन लेकर शुरू किए गए हॉस्टल और केयर एंड प्रोटेक्शन के दावे के औचित्य पर भी एक सवालिया निशान है ।वास्तविकता तो यह है कि अब इस नारे के पीछे की असलियत खुलकर सामने आ गई है और ज़्यादा दिनों तक सड़क के बच्चों की उम्मीदों के साथ छल करने की इजाज़त किसी को नही दी जा सकती. इन ज़रूरी सवालों के जवाब अब लिए जाने चाहिए तभी जितेन्द्र जैसे बच्चो को न्याय मिल पाएगा .आपसे एक बार फ़िर मेरा यह निवेदन है कि आप प्लीज सड़क के बच्चों को उनके हाल पर छोड़ दें ताकि वे कम से कम जीवित तो रह सकें । जबरन इन बच्चों (?) की मदद करने की आपकी कोशिशों ने उनका जीना दूभर कर दिया है .आशा है आप अन्यथा नही लेंगे .
सादर,
अभिषेक शर्मा(अमन साथी) ।
१८-०७-२००७, नयी दिल्ली।

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