Friday, April 11, 2008

हर्ष मंदर के नाम एक खुला पत्र



आदरणीय हर्ष सर ,

नमस्कार। यह संभवतः मेरा अन्तिम पत्र ही होगा आपके लिये क्योंकि आप जानते हैं अमन बिरादरी में जिस तरह के हालात हैं उसमे किसी सीधे-सच्चे आदमी के लिये न तो पहले काम के अनुकूल स्थितियां थीं और न अब हैं। मैंने अपने वरिष्ठ सहकर्मियों को जिस भयानक मनःस्थिति से गुजरते और आखिरकार अपने सबसे पसंदीदा काम से ख़ुद को अलग करते देखा है मैं शायद उसपर विश्वास भी नहीं कर पाता अगर मेरा अपना अनुभव उससे कुछ बेहतर होता।

आपके साथ जुड़ते वक्त जिस आदर्श को मैंने अपने जीवन का आकाशदीप बनाया था उसे ख़ुद आपने और आपकी चाटुकार मंडली ने धराशायी कर दिया। आपका अकुशल मार्गदर्शन, निष्ठावान साथियों के साथ छल और कीर्तन करने वाले कर्मियों की ताजपोशी, सड़क के बच्चों के साथ धोखा करने की नीयत( जो सराय बस्ती के अनुभव ने साबित कर दिया है) सबकुछ तार-तार हो चुका है -(१) कि जो खाना आपने सड़क के बच्चों को खिलाया वैसा खाना आप अपने बच्चों को कभी नहीं खिला सकते थे, (२) सराय बस्ती होस्टल का अब एक साल पूरा होने वाला है पर आजतक पढ़ाई-लिखाई, खेल-कूद, रिक्रियेशन, कौन्सिलिंग, ड्रग-डी-एडिक्शन जैसी गतिविधियाँ शुरू नहीं हो पायीं, (३) आज तक होस्टल में सभी बुनियादी सुविधाएँ मुहैया नहीं कराई गयीं जैसे पानी, बाथरूम,मेडीसिन वगैरह। जिन बच्चों का स्वास्थ्य ज्यादा बिगड़ गया, जो कि होना ही था, उनसे पिंड छुडाने में ही आप और आपकी मंडली अपनी काबिलियत दिखती रही- कई बच्चों को आपने बाल सुधार गृहों में भिजवा दिया पाता नहीं उनमें से कितने आज जीवित बचे हैं।

मैंने हमेशा यहाँ यही देखा कि कभी भी कर्मियों को समय पर मानदेय नहीं दिया गया जबकि आप हमेशा यह बताते रहे कि अमेरिका इंडिया फाउनडेशन , दिल्ली सरकार और जमायते-उलेमा-ए-हिंद से हमे भरपूर पैसा मिल रहा है। मैं तो फ़िर भी नया था पर मेरे पुराने साथी भी कभी यह जान नहीं सके कि इतना सारा पैसा आख़िर कहाँ और कैसे खर्च हो रहा है। मुझे तो केवल २००० रुपये मिलते थे पर यहाँ तमाम पुराने सहकर्मी जो पोस्ट ग्रेजुएट थे या हैं और जिनमे से कुछ के परिवार भी हैं जो दिल्ली में किराये पर रहते हैं, को केवल ५००० रुपये में १८-२० घंटे काम कराते हुए भी जानवरों जैसा सलूक करना आपके मानवीय और न्यायपूर्ण दुनिया बनने के अभियान का कौन सा चेहरा है आप ही बेहतर जानते होंगे।

अप्रील के महीने में, मैं कभी भूल नहीं सकता , एक पूर्व अमन साथी द्वारा एक पाँच महीने से गर्भवती, दो साल के बच्चे वाली निराश्रित औरत को सराय बस्ती होस्टल में आश्रय देने पर आपने जिस तरह का तूफ़ान खड़ा किया था और उस साथी को बगैर साँस तक लेने का मौका दिए यह कहा था कि उस औरत को फौरन बाहर निकालो उसने मुझे ही नहीं सारे साथियों को दहला दिया था। आपने ऐसी स्थिति बना दी थी जिसके कारण अंततः उस औरत को दुबारा सड़क पर जाना पड़ा। बच्चों की दुहाई देकर जो आश्रय आपने हासिल किया है वहां से दो साल के उस मुसीबतज़दा बच्चे को निकालने में आपने सारी सीमाएं पर कर लीं। उस औरत का क्या हुआ यह तो पता नहीं हाँ उस साथी को आपने ज़रूर संगठन छोड़ने को मजबूर कर दिया जिनकी एकमात्र गलती यह थी की वे आपकी तरह कथनी कुछ और करनी कुछ के सिद्धांत से समझौता करने की बजाय मिट जाना अच्छा समझते थे।

आप जो सूचना के अधिकार/गरीबों के अधिकार /रोज़गार के अधिकार......के लिये बात करते हैं , आपसे यह पूछा जाना चाहिए की जो लोग आपके साथ दो साल से /तक काम करते रहे उनकी सेवा शर्तें क्या हैं /थीं ? ये स्पष्ट क्यों नहीं हैं ? क्या केवल इस बात की सुविधा के लिये नहीं की आप जब चाहें किसी को बुलाकर निकाल सकें ? मैंने सुना है कि अमन बिरादरी एक ट्रस्ट है। क्या आपने कभी इस ट्रस्ट में सेवा-शर्तों पर बात /बहस की ? क्या आप यह बता पाने की स्थिति में हैं कि अमन बिरादरी में सेवा सम्बन्धी सारे निर्णय किस प्रक्रिया के तहत लिये जाते हैं ?आठ महीनों का मेरा जो अनुभव है उसमें मेरे लिये एकमात्र संतोष है कि मैंने बच्चों के साथ काम किया। इसके अलावा दफ्तर और आपके प्रशासन का अनुभव निरंतर यंत्रणा देने वाला रहा। संगठन का प्रशासनिक ढांचा एकदम अस्पष्ट है। सारे निर्णय जो अमन बिरादरी में होते हैं- क्या सी ई एस में तय होते हैं या कहीं और लिये जाते हैं ?इस सम्बन्ध में कोई पारदर्शिता क्यों नहीं है ?

पिछले दिनों आप उन सारे लोगों को जो फील्ड में काम करते रहे हैं/थे अस्थिर करते रहे हैं-तबादला करते रहे - संगठन से निकलने को मजबूर करते रहे। यह सब करते हुए क्या आपने एकबार भी उन बच्चों के बारे में सोचा जिनके साथ सम्बन्ध बनाने में सालों का वक्त लगा ? आपके साथ एक तो वह टीम थी - १०-१२ लोगों की जिसने संगठन को खड़ा किया - दूसरी तरफ़ एक बिल्कुल नई टीम है जिसे आपने प्रशासक की भूमिका में खड़ा कर दिया और वे बाकी लोगों को हांकते-हांकते संगठन से बाहर तक हांक आए! ताज्जुब है आप सामूहिकता की बात करते हैं ! लाख जूझने के बावजूद अमन साथी ये नहीं जान सके कि उनकी कानूनी हैसियत इस संगठन में क्या है - भागीदार की- नौकर की या कुछ और ?

आपके बात करने का तरीका कभी एक नहीं रहा। कभी आप अकेले बुलाकर बात करते हैं कभी आपका प्रशासन अकेले बुलाकर बात करता है- मुझे लगता है कि ये सारी बातें सार्वजनिक महत्त्व की हैं अतः इन्हें लोगों के सामने आना चाहिए। आपको यह तय करना चाहिए कि जो काम आप नहीं कर सकते - या नहीं कर पा रहे हैं, उन्हें आप नहीं करेंगे। आप अधिक से अधिक एक अक्षम प्रशासक हो सकते हैं जिसने चीजों को उलझा दिया। आप बताएं कि विगत दो साल में आप कितनी बार बच्चों के बीच शारीरिक रूप से उपस्थित हुए ? आठ महीनों के दरम्यान आप मेरे फील्ड में केवल एक बार ही आए। कहने को तो इतनी बातें हैं कि ...........पर मैं समझता हूँ इसका कोई असर नहीं होनेवाला क्योंकि जहाँ एजेंडे पर झूठ, स्वार्थपरता, चाटुकारिता पहले से प्राथमिकता के साथ मौजूद हो वहां एक अदना आदमी क्या कर पायेगा....क्या कर पाया है आजतक ?सारतः इतना कहूँगा कि मैं अब आगे उस अंधी गली में जाने से इनकार करता हूँ जिसमे आप संभावनाशील नौजवानों की एक पीढ़ी को, और बेघर-बेसहारा बच्चों की संभावनाओं को धकेलते हुए लिये जा रहे हैं, इस विश्वास के साथ कि आपके मसीहा बनने में ये कुर्बानियां ज़रूरी हैं। आपकी यह जीत आपको मुबारक हो ......मैं इस कैम्पेन(?) से ख़ुद को पूर्णतया अलग कर रहा हूँ।

अंत में मैं आपसे इस बात के लिये माफी चाहता हूँ कि मैं ये पत्र सार्वजनिक कर रहा हूँ। पर मेरी सदिच्छा इस अभियान को बचाने की है, इसीलिए ऐसा करना मेरी मजबूरी है। एक आम आदमी के पास विरोध का इससे अहिंसक तरीका क्या हो सकता था ?

सादर,

अभिषेक शर्मा

अमन साथी।

2 comments:

Shiv said...

हर्ष मंदर जी इतने बड़े आफिसर थे. लेकिन आपकी चिट्ठी से लगता है जैसे उनका मैनेजमेंट अच्छा नहीं है. और ये जमायते-उलेमा-ए-हिंद से भी भरपूर पैसे मिलते हैं इन्हें? या फिर अफसरी के दिनों में ही पैसे का इंतजाम भरपूर था और इसीलिए सरकार की नौकरी छोड़ दी इन्होने. जमायते-उलेमा-ए-हिंद से जो 'भरपूर' पैसे मिलते हैं, वो किस एवज में?

Anonymous said...

kaun bada officer tha>> Harsh??? He was only interested in getting prizes and certificate.. when I told him about the riot in Gujarat, his response was.. I will look into it.. wrote the Cry- My beloved country by copying 75% of tour report in the riot affected areas without even acknowledging it.. he is curse on development sector.. I have seen him, worked with him.. Talks about being Secular...he is a pain...

बच्‍चे उन्‍हें बसंत बुनने में मदद देते हैं !