एनजीओ के जरिये चल रही घिनौनी साम्राज्यवादी साजिशों के विरुद्ध एक आंदोलन
Saturday, February 23, 2008
विगत २१ फरवरी को जंतर मंतर पर बेघर बच्चों ने प्रदर्शन किया। वे गैर सरकारी संगठनों द्वारा सड़क के बच्चों का अमानवीय और बर्बर शोषण किए जाने के खिलाफ पिछले एक महीने से आन्दोलन कर रहे हैं। कुछ झलकियाँ।
प्रिय मित्रो , लंबे समय से एक ऐसे प्लेटफॉर्म की ज़रूरत महसूस की जा रही थी जहाँ हम आप मिल-बैठकर इस किस्म की चीजों पर जिनसे रोज़ हमारा साबका पड़ता रहता है कुछ सार्थक और प्रभावकारी विमर्श कर सकें और एक कठिन से कठिनतम होते चले जा रहे परिवेश को पूरा नहीं न सही, पर कुछ तो मानवीय बनाने की कोशिश की जाए। आशा है इस पहल का स्वागत करते हुए आप सबों का सहयोग प्राप्त होता रहेगा। आदर सहित, एनजीओ विरोधी मोर्चा ई मेल -ntngomorcha@gmail.com
तुम्हारी है बंदूक और मेरी भूख। तुम्हारी है बंदूक क्योंकि मेरी है भूख। तुम्हारी है बंदूक इसीलिए मेरी है भूख। रहने दो तुम्हारी बंदूक रहने दो तुम्हारी हजारों बुलेट यहाँ तक कि मेरे शरीर को छलनी कर दो और एक हज़ार गोलियों से तुम। एक बार दो बार तीन बार दो हज़ार बार सात हज़ार बार क़त्ल कर सकते हो तुम मुझे मगर अंत में मेरा हथियारअधिक रहेगा तुमसे अगर तुम्हारी रही बंदूक और मेरी महज भूख।
-अटो रेने कस्तिइयो (ग्वाटेमाला)
मेरे देश में
मेरे देश में अख़बार जनम के गूंगे हैं रेडियो जनम के बहरे टेलीविजन जनम के अँधे और मेरे देश के लोग जो इन्हें जनम से स्वस्थ और मुक्त देखना चाहते हैं वे ही उन्हें गूंगा बना देते हैं और उनकी हत्या कर देते हैं वे ही उन्हें बहरा बना देते हैं और उनकी हत्या कर देते हैं वे ही उन्हें अँधा बना देते हैं और उनकी हत्या कर देते हैं यही हो रहा है मेरे देश में।
-शर्को बेकास(कुर्दिस्तान)
फिर उठो
जो मर गए हैं उन्हें दफ़न कर फिर उठो क्योंकि हमे पीनी ही पड़ी है अंत-अंत तक अपनी यह लाल और कड़वी घूँट और हमे जिबह भी होना ही पड़ा जिबह होना पड़ा एक भेंड़ की तरह जब इतिहास उन्माद हो गया था और हमे भागना भी पड़ा/बगुलों के झुंड की तरह और शर्मिंदगी महसूस करनी पड़ी हड्डियों की गहराई तक पर चिंता मत करो/हम पुल बन गए हैं गरजते क्रुद्ध समुद्र पर जिसके तटों ने हमे कभी धोखा नहीं दिया और जिन्हें हमने भी कभी धोखा नहीं दिया सोने, हाथी दांतों और लाल पत्थरों की ओ हमारी धरती/हमारा प्रेम गहरा है बहुत ही गहरा और समृद्ध तो फिर/जो मर गए हैं उन्हें दफना कर उठो अगर समय बीत रहा है तो हम उसे यूँ ही बीतने नहीं देंगे क्योंकि हम समाप्त और नष्ट नहीं हुए हैं बल्कि एक बार फिर नए रूप में खड़े हैं।
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