Friday, February 22, 2008

बेघर बच्चों ने एनजीओ के खिलाफ जंतर मंतर पर किया प्रदर्शन

(सड़क पर रहने वाले बेघर-बेसहारा और कामकाजी बच्चों के संगठन बाल मजदूर यूनियन के बैनर तले विगत २१ फरवरी को सैकड़ों बच्चों ने जंतर मंतर पर इकठ्ठा होकर अपनी मांगों के साथ प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में बच्चों ने सरकार, समुदाय और विभिन्न गैर सरकारी संगठनों द्वारा अनवरत जारी शोषण-उत्पीड़न के खिलाफ डटकर मोर्चेबंदी करने की कसम ली और तय किया कि वे अब और बच्चों का व्यवसाय नहीं होने देंगे और ऐसे सभी संगठनों के काले कारनामों को सामने लायेंगे जो बच्चों की दुर्दशा का बाजारीकरण करते हुए मुट्ठी-भर लोगों की तिजोरियों के लिए सम्पदा जुटाने में लगे हैं। इस अवसर पर बच्चों ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के निदेशक को एक ज्ञापन भी दिया। हम यह ज्ञापन व्यापक जनता के सामने रख रहे हैं।)

हम सड़क पर रहने वाले और कामकाजी बच्चे हैं। हमारी ज़िंदगी अनंत दुखों और शोषण की कभी न ख़त्म होने वाली दास्तान है। सड़क पर आसरा लेने तथा वहां काम करने वाले बच्चों को कबाड़ चुनते , होटल या चाय की दूकान पर काम करते , कारखाने में खतरनाक काम करते , ठेले में धक्का लगाते, बोझ उठाते, मन्दिर की लाइन में लगकर खाना खाते, सड़क पर घूमते या खेलते, हर जगह पुलिस , मालिक, दलाल, नशेड़ी यहाँ तक कि आम राहगीर से भी गाली, मार सहनी पड़ती है और यौन शोषण का शिकार होना पड़ता है।

हमारे शोषण का स्तर इतना वीभत्स और व्यापक है जिसे शब्दों में बयान कर पाना सम्भव नहीं है, संभवतः इसे वातानुकूलित, सभी सुख सुविधाओं से सुसज्जित घरों में बैठकर तो बिल्कुल ही नहीं समझा जा सकता है।

हमे हर पल मार-पीट, गन्दी गालियों और तिरस्कार का सामना करना पड़ता है। यदि कड़ी मेहनत करके कुछ रुपये कमा भी लिए तो उसे छीनने के दावेदार बहुत हैं (पुलिस, बदमाश आदि) और रात को सोना तो हमारे लिए एक संघर्ष होता है। हमे न सिर्फ़ सर्दी, गर्मी व बारिश से बचना होता है बल्कि सड़क पर घूम रहे ऐसे लोगों से भी बचना होता है जो हमारे यौन शोषण की ताक में रहते हैं। इन शोषण कर्ताओं और नशेड़ियों की संगत हमें ऐसी बीमारियाँ दे जाती हैं जो मेडिकल साइंस के लिए भी दुर्जेय, वीभत्स और दुर्लभ बीमारियाँ होती हैं।

हम सड़क के बच्चों का भविष्य तो पूछिए ही मत। हमारी आंखों में साधारण बच्चों की तरह डॉक्टर, वकील, टीचर आदि बनने के सपने नहीं पलते बल्कि यह चिंता रहती है कि अगले वक्त का खाना मिलेगा या नहीं। अगर खाना मिल भी गया तो सोना कहाँ होगा। या कि हमें जो बीमारी है उसका इलाज कैसे होगा? असीम शोषण और असुरक्षा हमें अनचाहे अनजाने ही सही पर अक्सर अपराध और गैर कानूनी रास्तों पर धकेल देती है।

हमारी तकलीफों और शोषण को बढाने का काम गैर सरकारी संगठन NGO ( बटरफ्लाइज जैसे ) और करते हैं। कहने को तो यह हमारे कल्याण के लिए काम करते हैं लेकिन वास्तविकता में ये सरकार और सार्वजनिक संस्थाओं की आलोचना कर उनकी नाकामी विदेशी फंडरों और डोनरों को दिखाकर अपने ऐशो-आराम के लिए अपनी थैली भरते हैं। बटरफ्लाइज जैसी NGO बच्चों को एक पोस्टर भर मानती है। जब पोस्टर पुराना हो जाता है तो उसे उतारकर फेंक दिया जाता है। संस्था बच्चों को संख्या तथा उत्पाद भर मानती है जो उनके लिए डाटा भरने, झूठे किंतु लुभावने रिपोर्ट बनाने, करुणा से भर देने वाले फोटो खिंचवाने की चीज़ भर हैं जिनका इस्तेमाल कर वापिस उन्हें कूड़ेदान या गटर में फेंक दिया जाना चाहिए क्योंकि इनके अनुसार हमारी नियति यही है। इनके काम और अनवरत लाभ के लिए हमारा वहीं बने रहना ज़रूरी है। बटर फ्लाइज का उदाहरण देकर इसे आसानी से समझाया जा सकता है। इस संस्था ने अपने बीस वर्षों के इतिहास में तथाकथित बाल हितैषी कार्यक्रमों के लिए लगभग 50 करोड़ रुपये जुटाए तथा खर्च किए होंगे लेकिन इसके बदले में समाज को क्या प्राप्त हुआ? क्या यह संस्था समाज को उदाहरण प्रस्तुत करने लायक कोई बच्चा प्रस्तुत कर सकी है? मतलब ये 50 करोड़ या तो व्यर्थ गए या फ़िर एक या कुछ लोगों की जेबों में गए। मात्र दिल्ली में ही इस तरह की 200 से अधिक संस्थाएं हैं जिन्होंने पिछले एक दशक में सैकड़ों करोड़ रुपये विदेशी या सरकारी सहायता के रूप में प्राप्त किए होंगे। इस अथाह धन का कहाँ किस तरह प्रयोग किया गया यह गंभीर जांच का विषय हो सकता है। संभवतः यह धन बाल कल्याण अथवा सामाजिक कल्याण की बजाय NGO संचालकों की जेबों में गया हो। समाज विरोधी राष्ट्र विरोधी लोगों और गतिविधियों में लगा हो। निश्चित ही बाल अधिकार, बाल कल्याण के नाम पर अपनी दुकानदारी चमकाने वाली बटर फ्लाइज जैसी संस्थाएं बेघर और कामकाजी बच्चों का कोई भला नहीं कर सकती हैं। ऐसे में सरकार और समुदाय (NCPCR और NCHR) अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकते हैं। सरकार, विशेष तौर पर उसका मंत्रालय "महिला एवं बाल विकास" हम बच्चों की समस्याओं से ज़्यादा दिनों तक मुँह नहीं मोड़ सकता। ये ऐसा नहीं कह सकते कि एनजीओ हम बच्चों के कथित कल्याण के नाम पर जो कुछ कर रहे हैं उसकी इन्हें जानकारी नहीं है।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) से हम बच्चे इतनी तो उम्मीद कर ही सकते हैं कि वे स्वयं संज्ञान लेकर ठोस और बदलावकारी पहल करे। हम आपसे अपील करते हैं कि -

(1) सरकार के स्तर पर ठोस, व्यावहारिक व उपयोगी पहल हो जिसके कार्यान्वयन में सरकार या मंत्रालय की अहम् भूमिका हो।

(2) बाल अधिकारों के नाम पर दलाली कर रहे बटरफ्लाइज जैसे संगठनों को बाल हितैषी कार्यक्रमों से दूर रखा जाए।

(3) बाल हितैषी कार्यक्रमों के योजना निर्माण में और उसके क्रियान्वयन में बच्चों के स्वर को अहमियत और स्थान दिया जाए।

(4) एनजीओ के क्रियाकलापों में पारदर्शिता लाने के लिए उनके सभी कार्यक्रमों को, चाहे वे गैर सरकारी अथवा विदेशी स्रोतों से ही क्यों न चलते हों, पारदर्शी बनाने के लिए जनसूचना क़ानून आर टी आई के दायरे में लाना चाहिए।

हमारी आपसे प्रार्थना है कि हमरे दुःख दर्द, तकलीफों के साथ संघर्ष में आपका योगदान हमारे लिए एक सहारा बनेगा जिससे हम अपने अंधकारमय वर्तमान को मिटाकर भविष्य को कुछ रोशन कर सकेंगे।

राजू (पूर्व अध्यक्ष, बाल मजदूर यूनियन ) मुजीब (सचिव, बाल मजदूर यूनियन)

1 comment:

mamta said...

ये तो बड़े ही अफ़सोस की बात है । पर शायद सभी एन.जी .ओ . ऐसे ना हो।

बच्‍चे उन्‍हें बसंत बुनने में मदद देते हैं !