दूसरा भाग (अगले अंक से जारी)
(७) वे जनता को संघर्ष के रास्ते से भटकाते हुए और उनमे मौजूद सबसे बढ़िया तत्वों को सुधारवाद और व्यवस्था का अंग बनाते हुए जनता को लामबंद होने से रोकने की कोशिश करते हैं। एक प्रगतिशील और कई बार तो एक क्रांतिकारी छवि बनाते हुए वे वामपंथी बुद्धिजीवियों को पूँजी की तरफ़ करने में बड़ी हद तक कामयाब हुए हैं। चूंकि उनके हाथ भारीभरकम धनराशि रहती है, अतः गैर सरकारी संगठन वामपंथी बुद्धिजीवियों को सेमिनारों, कार्यशालाओं और सम्मेलनों में आने के लिए पैसा देकर और शोध एवं नीतिगत अध्ययन के लिए परियोजनाओं और संस्थानों में संलिप्त करते हुए अपनी तरफ़ आकर्षित करने में और अपने में शामिल करने में सफल हुए हैं। विश्व भर में साम्राज्यवादी पूँजी द्वारा हजारों परियोजनाएं और संस्थान शुरू किए गए हैं जो साम्राज्यवादियों की ज़रूरतों के अनुसार शोध करते हैं। इन परियोजनाओं के साथ स्वयं को जोड़कर बुद्धिजीवी उन्हें विश्वसनीयता प्रदान करते हैं और जनता में भ्रम पैदा करते हैं।
(८) गैर सरकारी संगठन जनता की राय को बदलने ,पूंजीवादी शोषण को जारी रखने के लिए आवश्यक विचारधारा और भ्रम पैदा करने के माध्यम के तौर पर काम करते हैं। वे इस ढंग से जनता के विचारों को प्रभावित कर सकते हैं जिस ढंग से राजसत्ता या शासक वर्गीय पार्टियाँ प्रत्यक्ष तौर पर नहीं कर सकतीं। स्वयं को निःस्वार्थ समाज सेवक के रूप में और जनकल्याण के प्रति समर्पित व्यक्तियों के रूप में पेश करने की कोशिश करते हुए, वे जनता की हमदर्दी जीतने की कोशिश करते हैं। उनके क्रांतिकारी, साम्राज्यवाद विरोधी तेवर और विकास, आधुनिकीकरण और जमीनी जनवाद, सिविल सोसाइटी के जनवादीकरण, सामाजिक न्याय, राजसत्ता विरोधवाद, मानवतावाद और मानवाधिकार, सशक्तिकरण आदि-आदि की बातें प्रगतिशील और यहाँ तक कि कुछ क्रांतिकारी हिस्सों को भी धोखे में डाल सकती हैं। इस प्रकार वे जनता के बीच एक वैचारिक भ्रम की स्थिति पैदा करते हैं और साम्राज्यवादी पूँजी के द्वारा बेरोकटोक लूट के रास्ते को प्रशस्त करते हैं।
(९) वे एशिया, अफ्रीका और लातिन अमरीका के देशों के औपनिवेशीकरण के लिए अंतर्राष्ट्रीय पूँजी के औजार का काम करते हैं। वे इन देशों में साम्राज्यवादी पूँजी के आराम से काम करने की और बाज़ार के विस्तार की परिस्थितियों को पैदा करते हैं। अपने काम के लिए सर्वाधिक पिछड़े क्षेत्रों को चुनकर गैर सरकारी संगठन सामुदायिक विकास, स्वयं सहायता ग्रुपों को प्रोत्साहित करने के नाम पर और साम्राज्यवाद द्वारा प्रायोजित विकास कार्यक्रमों को सक्रियातापूर्वक प्रोत्साहित करतें हुए इन क्षेत्रों में बाज़ार संबंधों को लाने में कामयाब हो गए। वे दुनिया के लगभग सभी देशों में और विशेष तौर पर पिछड़े आदिवासी क्षेत्रों में तथाकथित विकास कार्यक्रमों में सक्रियातापूर्वक संलिप्त हैं।
(१०) वे दुष्टतापूर्ण तरीकों से क्रांति को आगे बढ़ने से रोकने की कोशिश करते हैं और जहाँ क्रांतियाँ विजयी हो चुकी हैं, वहां मजदूर वर्ग के शासनों को अस्थिर बनाने की और पूंजीवादी व्यवस्था की पुनर्स्थापना की कोशिश करते हैं। अतः गैर सरकारी संगठन शहरी बस्तियों में बुनियादी जनता में ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ अपने काम काज के लिए सर्वाधिक पिछड़े, रणनीतिक क्षेत्रों को चुनते हैं जो क्रांति के संभावित केन्द्र होते हैं।
उत्तर आधुनिकतावादी जो सामूहिक की बजाय व्यक्तिगत उद्यमों में ज़्यादा विश्वास करते हैं, विभिन्न पहचान ग्रुपों के रूप में ज्यादा बात करते हैं जैसे लिंग, जाति, नस्ल और राष्ट्रीयता और वर्ग एकता की अवधारणा को सिरे से खारिज करते हैं और राजनीतिक पराजयवाद का शिकार होते हुए वे इन विचारों की वकालत करते हैं कि हम "इतिहास के अंत" तक पहुँच चुके हैं, "पूंजीवाद का कोई विकल्प नहीं है", मौजूदा परिस्थितियों में हमारे पास पूंजीवाद को अन्दर से ही सुधारने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा है, और इस प्रकार वे वर्त्तमान कि गैर सरकारी संगठनों की प्रक्रिया को वैचारिक आधार प्रदान करते हैं। चूंकि बहुत से उत्तर आधुनिकतावादी किसी समय मार्क्सवादी थे अतः वे गैर सरकारी संगठनों को प्रगतिशील और यहाँ तक कि क्रांतिकारी संगठनों के रूप में विश्वसनीयता प्रदान कर देते हैं।
संक्षेप में गैर सरकारी संगठन साम्राज्यवाद के चेले हैं जो स्वयं को आकर्षित करने वाली भाषा में छुपाकर रखते हैं। वे जनता की भयंकर गरीबी का व्यापार करते हैं और तीसरी दुनिया की गरीबी में जकड़ी जनता को दिखाकर विदेशों के साम्राज्यवादी दाताओं या व्यक्तियों से फण्ड वसूल करते हैं। परजीवियों की तरह वे गरीबी में जकड़ी महिलाओं, बच्चों और अपाहिज व्यक्तियों के नाम पर, विकास के नाम पर, सशक्तिकरण के नाम पर वसूले गए फण्ड पर जीवित रहते हैं। वे तीसरी दुनिया के देशों में साम्राज्यवादी पूँजी की घुसपैठ को न्यायोचित ठहराते हुए साम्राज्यवाद के लिए विचारक का काम करते हैं और इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर साम्राज्यवादियों के शिकंजे को प्रोत्साहित करते हैं। यही कारण है कि साम्राज्यवादी , खून चूसने वाले स्वार्थियों के जैसा उनका चरित्र है , इन संगठनों को खड़ा करने और इनके पालन-पोषण पर भारी-भरकम धनराशि खर्च करते हैं। फोर्ड फाउनडेशन , रोक्फेलर फाउनडेशन , कार्नेगी फाउनडेशन , हैनरिख बोल फाउनडेशन और अनेक अन्य साम्राज्यवादी संस्थान इन गैर सरकारी संगठनों के रख-रखाव पर प्रतिवर्ष लाखों डॉलर खर्च करते हैं।
क्रमशः , समापन किस्त अगले अंक में...
Thursday, February 14, 2008
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