इनकी व्याख्या निम्न ढंग से की जा सकती है-
(१) वे जनता के आक्रोश को सुरक्षा वाल्व का काम करते हुए संवैधानिक , शांतिपूर्ण और हानिरहित रास्ते पर ले जाते हैं।
(२) वे उत्पीड़ित जनता को तबकों और विभिन्न पहचान ग्रुपों में बाँटने की कोशिश करते हैं और इस प्रकार उत्पीड़ित जनता की वर्ग एकता को विकसित होने से रोकते हैं।
(३) केवल पहचान के आधार पर जैसे कि लिंग (महिला), जाति (दलित), नस्ल (आदिवासी), राष्ट्रीयता आदि के आधार पर उत्पीड़क और उत्पीडितों के बीच एकता की वकालत करते हुए वे वर्ग विभाजन को और विभिन्न सामाजिक ग्रुपों और तबकों में फ़र्क को अँधेरे में रखने की और ख़त्म करने की कोशिश करते हैं।
(४) वे उत्पीड़ित जनता में एक झूठा विश्वास भरने की कोशिश करते हैं कि पूँजीवाद का कोई विकल्प नहीं है और पूँजीवाद की अन्तिम विजय हो चुकी है। वे दावा करते हैं कि मार्क्सवाद पुराना पड़ चुका है अतः सिविल सोसाइटी का जनवादीकरण करते हुए और एक मानवीय चेहरे वाले वैश्वीकरण को प्रोत्साहित करते हुए वर्तमान विश्व में ही सुधार लाने के हमें प्रयास करने चाहिए।
(५) वे राजसत्ता विरोधी रुख अख्तियार करते हैं , जो प्रगतिशील लोगों को भी सीधे-सीधे आकर्षित करता है। हालांकि, वे निजीकरण को सूक्ष्म स्तर पर लागू करने की कोशिश करते हैं जबकि उनके मास्टर यही काम स्थूल स्तर (Macro Level) पर करते हैं। यानी अंतर्राष्ट्रीय पूँजी अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने में राज्यों की भूमिका को ख़त्म करने की बात करती है और चाहती है कि बाज़ार बिना राज्य के हस्तक्षेप के मुक्त रूप से चलता रहे (वास्तविकता में यह कितना झूठ है, यह अलग बात है), जबकि ग़ैर सरकारी संगठन स्वयं सहायता , सहयोग, सामुदायिक विकास आदि आदि की बात करते हैं। इस प्रकार राजसत्ताओं को शिक्षा, चिकित्सा सुविधा,पीने का साफ पानी, स्वच्छता, सिंचाई, रोज़गार आदि विषयों में जनता के प्रति उनकी तमाम सामाजिक जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया जाता है और इन विषयों को निजी व्यक्तियों या निजी ग्रुपों के हाथों में सौंप दिया जाता है। अतः ग़ैर सरकारी संगठन निजीकरण के संबंध में साम्राज्यवाद के साथ मिलकर काम करते हैं। वे विशेष तौर पर पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी गरीब बस्तियों में गरीबी से जकड़ी जनता के बीच ध्यान केन्द्रित करते हैं। आदिवासियों के पिछड़े इलाकों को उनके तथाकथित सेवार्थ कामों और विकास कार्यक्रमों के लिए प्राथमिकता दी जाती है। इसके माध्यम से वे गरीब जनता के आक्रोश को निष्क्रिय करने की कोशिश करते हैं।
(६) वे ग़ैर पार्टी सक्रियता के तौर पर बात करते हुए जनता का अराजनीतिकरण करने की कोशिश करते हैं। वे दावा करते हैं कि वे ग़ैर राजनीतिक हैं और जनता को सभी राजनीतिक पार्टियों से दूर रहने की सलाह देते हैं, और उन्हें स्वयं सहायता और सहयोग के द्वारा अपनी समस्याओं का खुद समाधान करने की सलाह देते हैं। इस प्रकार एक अराजनीतिक दिखने वाली रणनीति की वकालत करते हुए वास्तव में ग़ैर सरकारी संगठन यथास्थिति को बनाए रखने का और जनता पर शासक वर्गों की विचारधारा और राजनीति के प्रभाव को बनाए रखने का काम करते हैं। वे स्वयं को राजनीतिक पार्टियों के विकल्प के रूप में पेश करते हैं और स्वयं को गरीबों के चैम्पियन के रूप में पेश करते हुए क्रांतिकारी पार्टियों को जनता से दूर रखने की कोशिश करते हैं।
क्रमशः अगले अंक में...
Tuesday, February 12, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
आज के दिन आपका ब्लागवाणी पर पदार्पण के कुछ विशेष मायने निकलते हैं.
अभी तो गैर सरकारी संगठनों और विदेश से आये धन पर बहस चल रही है. आप भी इस में अपनी राय क्यों नहीं रखते?
Post a Comment