(एड्स नियंत्रण के नाम पर इस देश में जितने बड़े पैमाने पर गोरखधंधा चल और फल-फूल रहा है इसकी दूसरी कोई मिसाल शायद ही ढूँढने पर मिले। यह किस्सा इस वक़्त के बहुचर्चित ब्लॉग मोहल्ला पर तीन किस्तों में आया था। दिलीप मंडल के इस रहस्योद्घाटन को हम यहाँ आभार सहित रख रहे हैं क्योंकि ज्यादातर लोग साम्राज्यवाद प्रायोजित प्रचार के घटाटोप में सच देख नहीं पा रहे।)
गन्दा है पर धंधा है ये
दिलीप मंडल
( एड्स खतरनाक बीमारी है। इस बात को आप अपने निजी अनुभव, आस-पास रिश्तेदारी, दोस्तों, मोहल्ले, कस्बे, अपार्टमेंट में होने वाली मौतों से बेशक महसूस न कर पाएं, लेकिन सरकार से लेकर तमाम एनजीओ और विश्वभर की संस्थाएं आपको यही समझाने की कोशिश कर रही हैं। आइए जानते हैं कुछ तथ्यों के बारे में। ये सारे तथ्य भारत सरकार ने संसद में लिखित रूप में रखे हैं। ये सबसे ताजा उपलब्ध आंकड़े है। इन सबके लिंक दे रहा हूं, ताकि निष्कर्ष पर विवाद हो तो भी स्रोत सामग्री की विश्वसनीयता बनी रहे। - दिलीप मंडल)
एड्स से भारत में हर साल कितने लोग मरते हैं?भारत सरकार कहती है कि 2004-5 में 1678, 2005-2006 में 1624 और 2006-2007 में 1786 लोग एड्स की वजह से मौत के शिकार हुए। स्वास्थ्य मंत्रालय ने ये आंकड़ा 7 सितंबर 2006 को संसद में पेश किया। ये उस सरकार के नतीजे हैं जो एड्स को देश की सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्या मानती है और कॉमन मिनिमम प्रोग्राम में जिस एक बीमारी का जिक्र है वो एड्स ही है।टीबी और कैंसर से हर साल कितने लोग मरते हैं?भारत सरकार ने संसद को बताया है कि कि हर साल 18 लाख से ज्यादा लोगों को टीबी होता है और साल में 3 लाख 70 हजार से ज्यादा लोग टीबी से मरते हैँ। दुनिया में टीबी के कुल केस का 20 परसेंट सिर्फ भारत में दर्ज होता है। यानी दुनिया में टीबी का हर पांचवां मरीज भारतीय है।कैंसर की बात करें तो आईसीएमआर के जरिए राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री में हर साल 7 से 9 लाख नए कैंसर मरीजों के मामले हर साल दर्ज होते हैं और हर साल 4.4 लाख लोग कैंसर से मरते हैं। कैंसर भारत में मौत की चौथी सबसे बड़ी वजह है। ये आंकड़े आप संसद की साइट पर देख सकते हैं।
एक मौत 1.29 करोड़ रुपए की और दूसरी मौत 3,181 रुपए की
(मौत को रुपए में आंकने से बुरी बात क्या हो सकती है। लेकिन बात इतनी कड़वी है कि इसे मीठे अंदाज में पेश करना मुश्किल है। बात एड्स के अर्थशास्त्र और राजनीति की हो रही है। एड्स सचमुच एक अद्भुत बीमारी है। इसे लेकर पढ़ने बैठा तो जानकारियों को पिटारा खुलता चला गया। आप भी इस चर्चा में हिस्सेदार बनें। आखिर ये आपकी सेहत का मामला है - दिलीप मंडल)
पांच साल में 11,585 करोड़ रुपए। आपको एड्स न हो जाए, इसके लिए ये रकम पांच साल में खर्च की जाएगी। पैसा सरकार भी खर्च कर रही है और दुनिया भर से बरस भी रहा है। और देश में मची है इस पैसे की लूट। इस लूट में कई हिस्सेदार हैं। लूट तो देश-दुनिया में और भी कई किस्म की हो रही है, लेकिन भारत जैसे गरीब देश में जहां 30-40 रुपए के आयरन टैबलेट न मिलने के कारण न जाने कितनी गर्भवती महिलाएं और नवजात बच्चे दम तोड़ देते हैं, वहां ये लूट मानवता के खिलाफ अपराध है। देखिए एड्स के लिए आ रहे पैसे का ऑफिशियल लेखाजोखा :बिल और मिलेंडा गेट्स फाउंडेशन से आएंगे 1425 करोड़ रुपए।ग्लोबल फंड टू फाइड एड्स, ट्यूबरकलोसिस एंड मलेरिया से मिलेंगे 1787 करोड़ रुपए।वर्ल्ड बैंक देगा 1125 करोड़ रुपए।डीएफआईडी से आएंगे 862 करोड़ रुपए।क्लिंटन फाउंडेशन ज्यादा पैसे नहीं दे रहा है, वहां से आएंगे 113 करोड़ रुपए।यूएसएड से 675 करोड़ रुपए आ रहे हैं।यूरोपियन यूनियन को भी भारत के एड्स पीड़तों से हमदर्दी है और वो 77 करोड़ रुपए दे रहा है।संयुक्त राष्ट्र की अलग अलग एजेंसियों 323 करोड़ रुपए दे रही हैं।दूसरे विदेशी स्रोतों से 741 करोड़ रुपए आ रहे हैं, जिसमें अमेरिकी सरकार से मिलने वाले 450 करोड़ रुपए शामिल हैं।भारत सरकार के बजटीय आवंटन को जोड़ दें तो ये रकम हो जाती है 11,585 करोड़ रुपए।ये वो रकम है जो पांच साल के राष्ट्रीय एड्स कंट्रोल प्रोग्राम फेज-3 पर खर्च होनी है। प्रधानमंत्री की सलाहकार समिति के एक प्रेजेंटेशन के पेज 44-45 पर आप पूरा हिसाब देख सकते हैं। संसद की साइट पर भी विदेश से आने वाले पैसे का हिसाब किताब आपको इस लिंक पर दिखेगा। वैसे ये तो सीधा साधा हिसाब हैं वरना राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन जैसे कार्यक्रम में भी फोकस एड्स पर ही कर दिया गया है।
कंडोम बांटते एनजीओ और एड्स का कारोबार
(पिछली दो पोस्ट में आपने पढ़ा कि किस तरह एड्स से साल में 2000 से कम लोग मरते हैं और मरने वालों की संख्या बढ़ भी नहीं रही है, लेकिन एड्स से लड़ने के नाम पर आने वाला पैसा लगातार बढ़ता जा रहा है। आपने ये भी पढ़ा कि एड्स की एक मौत को टालने पर सवा करोड़ रुपए खर्च होते हैं जबकि कैंसर जैसी बीमारियों से होने वाली मौत से निबटने के लिए औसत खर्च 3181 रुपए है। पैसा किन स्रोत से आ रहा है इसकी भी बात हो चुकी है। अब जानते हैं ये पैसा जा कहां रहा है। - दिलीप मंडल)एड्स के नाम पर आ रहे अंधाधुंध पैसे का सबसे बड़ा हिस्सा (73%) खर्च किया जा रहा है लोगों को अवेयर बनाने के लिए। यानी पोस्टर, पर्चे, नुक्कड़ नाटक, बुकलेट, विज्ञापन आदि पर। प्रधानमंत्री की राष्ट्रीय सलाहकार परिषद को दिए प्रेजेंटेशन में नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन यानी नैको ने बताया है कि एड्स जागरूकता के विज्ञापन 2006 में 19,250 बार टेलीविजन चैनलों पर दिखाए गए।इसी प्रेजेंटेशन में बताया गया है कि नेशनल रूरल हेल्थ मिशन के तहत 2007 से 2012 के बीच सरकार देश में 2031 करोड़ रुपए के कंडोम बांटेगी। ये रकम तो सिर्फ एनएचआरएम के तहत कंडोम खरीदने पर खर्च होनी है। नेशनल एड्स कंट्रोल प्रोग्राम (एनएसीपी) का खर्च इससे अलग है। एनएसीपी के तहत देश में कंडोम की कुल खपत 3।5 अरब सालाना पर ले जाने का इरादा है। देश की कुल जनसंख्या में आधी आबादी और बच्चों और बूढ़ों के साथ उन लोगों की संख्या घटा दें जो अपना कंडोम खुद खरीदतें हैं, तो प्रति व्यक्ति कंडोम की खपत का रोचक आंकड़ा निकलेगा। एड्स के नाम पर हो रहे खर्च में चूंकि अस्पतालों की खास भूमिका नहीं है (क्योंकि मरीज कहां से आएंगे)। ये खर्च हो रहा है एनजीओ के माध्यम से। एड्स की जागृति फैलाने में एक लाख बीस हजार सेल्फ हेल्प ग्रुप को ट्रेनिंग दी जा रही है। आप इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि एड्स के लिए पैसा आता रहे और स्वास्थ्य पर खर्च की प्राथमिकताएं न बदलें इसमें कितने लोगों का स्वार्थ जोड़ दिया गया है।संख्या का हिसाब देखें तो अभी पौने तीन लाख लोग फील्ड वर्कर के तौर पर एड्स की जागरूकता फैला रहे हैं। नेशनल एड्स कंट्रोल प्रोग्राम के तहत 2012 तक इनकी संख्या बढ़ाकर साढ़े तीन लाख करने का इरादा है। एडस कंट्रोल कार्यक्रम से एक लाख तेरह हजार डॉक्टरों और लगभग एक लाख नर्सों को भी जोड़ा जा हा है। यानी हमारे देश में एड्स बेशक बड़ी बीमारी नहीं है लेकिन ये बहुत बड़ा रोजगार जरूर है। ये सरकारी आंकड़े तो बता रहे हैं कि एड्स से मिलने वाला रोजगार बीपीओ सेक्टर के रोजगार से भी ज्यादा है।
Friday, March 14, 2008
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1 comment:
Greetings from Italy :D
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